Monday, June 15, 2020

Poem on Life with fun


                                    a poem on growing life and how post marriage you miss so much 

Monday, January 15, 2018



आज़ादी का है प्रतीक
हर ऊंची उड़ी पतंग
हवा के संग संग डोलती जाती
और बादल संग संग

छतों पे चढ़े लोग
जैसे पंछी बन उड़ना चाहें
करें मशक्कत खींच डोरियां
नाचें सबकी बाहें

उंगलियां हैं कटी फटी
पर चारों तरफ बहार
रंग बिरंगा आसमान है
आया पतंग त्यौहार

Friday, January 12, 2018

National Food  राष्ट्रीय खाना

इसमें थोड़ा प्याज़ टमाटर
थोड़ा नमक मसाला है
मुरमुरे हैं खूब करारे
चना भी इक दम आला है

कोई डाले चाट पापड़ी
हर प्रकार का दाना है
सबके मन को भाता है
भारत का राष्ट्रीय खाना है

इसमें नहीं मिलावट कोई
न ही कोई खेल है
पूरे देश में मिलती है ये
और कहलाती 'भेल' है

Sunday, December 31, 2017

Happy new year 2018


पाएं आप खुशियां जहां की
पूरे हों सब सपने 
प्यार इज़्ज़त दें आपको सारे 
पराये हों या अपने 
निकल के उभरे आपके अंदर 
बैठा हुआ सितारा 
बीते मस्ती हँसी खुशी से दो हज़ार अठारह 

-जितेश मेहता 

Happy 2018

Wednesday, July 26, 2017

ऐसे कारगिल चले


    On Occassion of Kargil Vijay Diwas
    कारगिल विजय दिवस
    बिना सोचे क्या होगा
    बाद में 
    कौन रखेगा हमें
    याद में
    सारी पलटने सीना
    तान के
    जीतना है बस
    यही मान के
    वीर अपना सर उठा
    लेके शेर-दिल चले
    ऐसे कारगिल चले
    पाँच सौ सत्ताईस वीरों ने
    अपने को कुर्बान किया
    देश है पूरा ऋणी इन सबका
    मिलकर ऐसा काम किया
    हुए हज़ारों घायल
    फिर भी दुश्मन दूर खदेड़ दिया
    जो आए थे क़ब्ज़ा करने
    उनको मार उधेड़ दिया
    देश राग में एक साथ में
    सारे सैनिक मिल चले
    ऐसे कारगिल चले
    इन वीरों की गाथा
    हमको हर वर्ष दोहरानी है
    याद है रखना हर शहादत
    बेफ़िज़ूल न जानी है
    नौजवानों ने हम सबकी
    और देश की साख रखी
    हुए शाहिद सरहद पर मिलकर
    अपने जिस्म की राख रखी
    उनके हर चिंघाड़ पे
    दुश्मन के पर्वत हिल चले
    ऐसे कारगिल चले
    Kargil कारगिल के युद्ध में सम्मिलित वीरों और शहीदों को समर्पित -
    एक छोटी सी श्रद्धांजलि -Jitesh Mehta


Monday, July 24, 2017

गीला है

आज तो मेघा ऐसे बरसे
हर इक स्थान गीला है
धरती तो गीली होनी थी
आसमान भी गीला है
बाहर जितना भी पड़ा
सारा सामान भी गीला है
इंसान तो गीले हैं ही
'भगवान' भी गीला है
अच्छा भी गीला है
और शैतान भी गीला है
इज़्ज़तदार भी गीला है
और बदजुबान भी गीला है
पांडे गीला, Joseph गीला,
सिंह और ख़ान भी गीला है
धूप से सूख जो मुरझाया था
हर अरमान गीला है
रौनक वाला गीला है
रस्ता 'सुन-सान' गीला है
शातिर भी गीला है
बेचारा नादान भी गीला है
जिनकी ईंटें सूख चुकी थी
हर वो मकान गीला है
आज तो मेघा ऐसे बरसे
हर इक स्थान गीला है ...

-वर्षा ऋतु की शुभकामनाएं 
  जितेश मेहता 

Saturday, April 29, 2017

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में
अपनी एक दुकान है 
जिसमें गहने बिकते हैं 
ग्राहक अक्सर दिखते हैं 
नोटों का गोदाम है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
अपना बड़ा सा बंगला है 
बाकी मोहल्ला कंगला है 
दरबार हूँ रोज़ लगाता 
ऐसी अपनी शान है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
तीन रानियाँ संग में है 
सेना बाकी जंग में है 
जीवन रंगा-रंग में है 
इक सोने की खान है 

ख़यालों की बस्ती में

ख़यालों की बस्ती में 
बनें संत महान हैं 
बाटें हरदम ज्ञान हैं 
काम किए कुछ ऐसे 
मिलने को तरसे इंसान हैं 

ख़यालों की बस्ती में

-जितेश मेहता